Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। २५ ।। www.kobatrth.org इमे एयारिसे सुभे सोमे पियदंसणे सुरूवे सुमिणे दट्ठूण, सयणमज्झे पडिबुद्धा अरविंद - लोयणा हरिस - पुलइअंगी “एए चउदस सुविणे, सव्वा पासेई तित्थयर - माया । जं रयणि वक्कमई, कुच्छिसि महायसो अरहा ||१||” ॥सू. ४७|| Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir तए णं सा तिसला खत्तियाणी इमे एआरूवे उराले चउद्दस महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धा समाणी हठ्ठठ जाव हियया धाराहय - कयंब पुप्फगंपि व समुस्ससिअ - रोमकूवा सुमिणुग्गहं करेइ करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुठ्ठेइ, अब्भुठ्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता, अतुरिय - मचवल-मसंभंताए, अविलंबियाए, रायहंस - सरिसीए गईए, जेणेव सयणिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छीइ, उवागच्छित्ता सिद्धत्थं खत्तियं ताहिं इठ्ठाहिं, कंताहिं, पियाहिं, मणुण्णाहिं, मणामाहिं, क उरालाहिं कल्लाणाहिं, सिवाहिं, धन्नाहिं, मंगल्लाहिं, सस्सिरीयाहिं, हियय-गमणिज्जाहिं, हिअय-पल्हायणिज्जाहिं, मिउ - महुर - मंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी २ पडिबोहेइ॥सू. ४८॥ तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थेणं रन्ना अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणि - कणग - रयण - भत्ति चित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था For Private and Personal Use Only 嫩 मूळ ।। २५ ।।

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