Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र . ॥ २३ ॥ - बलाहय - चक्क-कलहंस-सारस-गव्विय-सउण-गण-मिहुण- सेविज्जमाण-सलिलं, पउ-मिणि-पत्तो-वलम्ग-जलबिंदु-निचय-चित्तं, पिच्छइ, सा हिअय-नयण-कंतं, पउमसरं नाम सरं, सररूहाभिरामं १० ।।सू. ४२।। तओ पणो चंद-किरण-रासि - सरिस - सिरिवच्छ - सोहं, चउगमण पवड्ढमाण-जल-संचयं, चवल - चंचलु - च्चाय - प्पमाण - कल्लोल - लोलंत - तोयं, पडु-पवणाहय-चलिअ-चवल-पागड-तरंग-रंगत-भंग-खोखुब्भमाण-सोभंतनिम्मल-उक्कड-उम्मी-सहसंबंध-धावमाणा-वनियत्त-भासुर-तराभिरामं, महामगरमच्छ| तिमि-तिर्मिगिलि-निरुद्धतिलि-तिलिया-भिघाय-कप्पूर-फेण-पसरं, महानई-तुरिय - वेग-समागय-भम-गंगावत्त-गुप्पमाणु-च्चलंत-पच्चोनियत - भममाण - लोल-सलिलं, पिच्छइ, खीरोय-सायरं सारय-रयणिकर- सोमवयणा ११ ।।सू.४३|| | तओ पुणो तरुण-सूर-मंडल-समप्पह, दिप्पमाण-सोहं उत्तम-कंचण-महामणिसमूह-पवर-तेय-अठ्ठ-सहस्स-दिप्पंत-नह–प्पईवं, कणग-पयर- लंबमाण-मुत्ता -समुज्जलं, जलंत-दिव्वदाम, ईहामिग-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किंनर 球球球球球激激瞭瞭激燃燃燃激球球球球部部 ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only

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