Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।। २० ॥ 激滋滋球球球球球球球球球賺賺賺賺激盪激激踪踪踪 | सोभंत - सप्प भेणं सोभा गुण- स मु द एणं आ ण ण - कु डुबि एण : कमलामल-विसाल-रमणिज्ज-लोअणि, कमल-पज्जलंत-कर-गहिअ-मुक्क-तोयं, लीलावाय-कय-पक्खएणं सुविसद-कासिण-घण-सह-लंबंत- केस हत्थं, पउमद्दह-कमल-वासिणि, सिरिं, भगवई पिच्छइ. हिमवंत-सेल-सिहरे |दिसा-गइंदोरु-पीवर-कराभि-सिच्चमाणिं ४ ||सू. ३६।। तओ पुणो सरस - कुसुम - मंदार - दाम - रमणिज्ज - भूअं, चंपगासोग| पुन्नाग-नाग-पिअंगु-सिरिस-मुग्गर-मल्लिआ-जाइ-जूहि-अंकोल्ल-कोज्ज- कोरिंटपत्तदमणय - बउल - नवमालिअ-तिलय-वासंतिअ-पउ-मुप्पल-पाडल-कुंदाइ - मुत्त-सहकार-सुरभि-गंधि, अणुवम-मणोहरेणं गंधेणं दस-दिसाओ वि वासयंतं, सव्वोउअ-सुरभि-कुसुम-मल्ल-धवल- विलसंतकंतं -बहवन्न-भत्तिचित्तं, छप्पय - महुअरि-भमरगण-गुमगुमायंत-निलित-गुंजंत-देसभागं, दाम, पिच्छइ नभंगण-तलाओ |ओवयंतं ५ ॥सू. ३७|| ससिं च गोखीर-फेण-दगरय-रयय-कलसपंडुरं, सुहं, हिअय - नयणकतं, 發強強強強會四强强强强强强舞琦露露画图网燈過斑透露 ॥ २० ॥ For Private and Personal Use Only

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