Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
।। १४ ।।
* चवलाए, चंडाए, जयणाए, उद्धआए, सिग्घाए, छेआए, दिव्वाए, देवगईए, वीईवयमाणे वीईवयमाणे तिरिअ - मसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झं मज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे भारहे वासे जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव उसभदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी | तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स पणामं करेइ, पणामं करित्ता देवाणंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवणिं दलइ, दलित्ता असुहे पुग्गले अवहरइ, अवहरित्ता सुभे पुग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता 'अणुजाणउ मे भयवं' ि कट्टु समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं करयलसंपुडेणं गिण्हइ, करयलसंपुडेणं गिण्हित्ता जेणेव खत्तिअकुंडग्गामे नयरे जेणेव सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स गिहे जेणेव तिसला खत्तिआणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिसलाए खत्तिआणीए सपरिजणाए ओसोवणि दलइ, दलित्ता असुहे पुग्गले अवहरइ, अवहरित्ता | सुहे पुग्गले पक्खिवइ पक्खिवित्ता समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं तिसलाए खत्तिआणीए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ, जे वि अ णं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तं पि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ता कुच्छिसि भत्ता
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मूळ
।। १४ ।।

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