Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कल्पसूत्र
।। १३ ।।
www.kobatrth.org
भारियाए तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहराहि । जे वि अणं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तं पि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ता कुच्छि गब्भत्ताए साहराहि, साहरित्ता मम एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि ॥ सू.२५ ।। (चित्र नं. २)
तणं से हरिणेगमेसी पायत्ताणिआहिवई देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वृत्ते समाणे हठ्ठ जाव हिअए करयल जाव त्ति कट्टु एवं जं देवो आणवेइ' त्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सक्क्स्स देविंदस्स देवरन्नो अंतिआओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता | वेउव्विअ - समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखिज्जाई जोअणाई दंडं निसिरइ, तं | जहा :- रयणाणं, वयराणं, वेरुलिआणं, लोहिअक्खाणं, मसारगल्लाणं, हंसगब्भाणं, पुलयाणं, सोगंधिआणं, जोईस्साणं, अंजणाणं, अंजणपुलयाणं, जायरूवाणं, सुभगाणं, अंकाणं, फलिहाणं, रिठ्ठाणं, अहाबायरे पुग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता अहासुहुमे पुग्गले परिआदियइ ॥सू. २६ ।। परिआइत्ता दुच्चपि वेउव्विअ - समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता उत्तर - वेडव्विअं रूवं विउव्वर, विउव्वित्ता ताए उक्किठ्ठाए, तुरिआए,
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir
违
मूळ
चित्र
नं.
२
।। १३ ।।

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121