Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
।। १२ ।।
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माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा । कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा, वक्कमंति वा, वक्कमिसंति वा, नो चेव णं जोणी- जम्मण-निक्खमणेणं निक्खमिंसु वा निक्खमंति वा, निक्खमिस्संति वा ॥ सू. २२|| अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वकते ॥सू. २३|| तं जीअमेअं तीअपच्चुप्पण्ण-मणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवरायाणं अरिहंते भगवंते तहप्पगारेहिंतो अंतकुलेहिंतो पंतकुलेहिंतो तुच्छकुलेहिंतो दरिद्दकुलेहिंतो किविणकुलेहिंतो वणीमगकुलेहिंतो माहणकुलेहिंतो तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, नायकुलेसु वा खत्तिअकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्ध - जाइ - कुल - वंसेसु साहरावित्तए || सू. २४|| तं गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महावीरं माहणकुंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए | कुच्छिओ खत्तिअकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स
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।। १२ ।।

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