Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मूळ
॥ १०॥
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अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहण-कुण्डग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्तन्ते ॥१९॥ तं जीअमेअं तीअ-पच्चुप्पन्न-मणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवरायाणं, अरिहंते भगवंते तहप्पगारेहितो अन्तकुलेहिंतो पन्तकुलेहिंतो तुच्छकुलेहिंतो दरिद्दकुलेहिंतो भिक्खागकुलेहिंतो किविणकुलेहिंतो वा, माहणकुलेहिंतो वा, तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, नायकुलेसु वा | खत्तिअकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाइ-कुल-वंसेसु जाव रज्जसिरिं कारेमाणेसु पालेमाणेसु साहरावित्तए । तं सेयं खलु मम वि समणं भगवं | महावीरं चरमतित्थयरं पुव्वतित्थयर-निद्दिळू, माहणकुण्डग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिओ खत्तिअकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरावित्तए, जे वि अ णं से तिसलाए खत्तिआणीए गब्भे तं वि अ णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए
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