Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
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強強強強強發發發發發硬發變變變變變變變變發發發
माहणीए जालंधरस - गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्तं पासइ, पासित्ता हठ्ठ -तुठ्ठ - | चित्तमाणंदिए, नंदिए, परमाणंदिए, पीइमणे परम-सोमणस्सिए, हरिसवस - विसप्पमाण |- हिअए, धाराहयकयंब-सुरहिकुसुम-चंचुमाल-इअ -ऊससि अ-रोमकूवे, | विअसिअ-वर-कमलाणण-नयणे, पयलिअ-वर-कडग-तुडिअ-केऊर-मउड-कुंडल| हार-विरायंत-वच्छे, पालम्ब-पलंबमाण-घोलंत-भूसणधरे, ससंभमं तुरिअं चवलं सुरिंदे । सीहासणाओ अब्भुइ, अब्भुठ्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेरुलिअवरिठ्ठ- रिठ्ठ-अंजण-निउणोवचिअ-मिसिमिसिंत-मणिरयण-मण्डिआओ पाउआओ
ओमुअइ, ओमुइत्ता एगसाडिअं उत्तरासंगं करेइ, करित्ता अंजलि-मउलिअग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तठ्ठ-पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साह? तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता | ईसिं पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग-तुडिअ-थंभिआओ भुआओ साहरेइ, साहरित्ता करयल-परिग्गहिअं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी नमुत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयं - संबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं,
遊遊蒸發強發發發發發強強發強強強強強強發發發發發發發發
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