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मारने की आदतवाले को पू. बापजी म. की आज्ञा से उत्प्रव्रजित करना पड़ा था ।
साधुका द्रव्य दीक्षा का पालन भी लोगों को कितना आनंद देता हैं ? दक्षिणमें गये । अजैन प्रजा भी इतनी प्रसन्नता से झूकती है कि हम स्तब्ध बन जायें । भगवानने कैसा धर्म बताया हैं ?
इस जीवन में हम दूसरों को आनंद के स्थान पर उद्वेग दें तो ? हमारे कारण कोई धर्म की निंदा करे तो ?
पू.पं. भद्रंकर वि.म. कहते : 'चारों तरफ हरियालीवाला स्थान हो, रोड़ के उपर ही हरियाली रहित स्थान मिलता हो तो हरियाली के उपर बैठीये, किंतु रोड़ के उपर नहीं ।'
हमारे कारण किसी को उद्वेग हो, ऐसा व्यवहार हो ही कैसे सकता हैं ? शासन की प्रभावना के लिए शायद पुण्य चाहिए, परंतु अपभ्राजना रोकने के लिए ऐसे पुण्य की जरुरत नहीं हैं । यह तो सबसे हो सकता हैं । यह सबका कर्तव्य हैं ।
बीलीमोरावाले जीतुभाई श्रोफ के द्वारा 'उपदेशधारा' पुस्तक मिली हैं । शैली रोचक असरकारक हैं। कथावार्तालाप, सूत्रात्मक निरूपण, प्रकरण के अंतमें विशेष प्रेरक परिच्छेद इत्यादि अत्यंत उपयोगी हैं ।
पसंदगी के विषय... मानव जीवनमें उदात्त भावना और गुणों के विकासमें पूरक बन सकते हैं । आपके साहित्य-संपादन के बारेमें जाना हैं । जैन गीता काव्यों का संशोधन चल रहा हैं । उसमें ज्ञानसार गीताका आपश्रीने पद्यानुवाद किया हैं उसकी नोट की हैं ।
- डोकटर कविन शाह
.बीलीमोरा
(कहे कलापूर्णसूरि - ४0000000000000000000 ५)