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लिए आते हैं । प्रभु के चरण जहां पड़ते हैं, वहां पर कमल उपस्थित हो जाते हैं ।
कमल आनंद का कारण बनता हैं, उसी तरह भगवान मोक्षपरम आनंद के कारण बनते हैं । जयइ जगज्जीवजोणि, वियाणओ जगगुरु जगाणंदो ।
___- मलयगिरि आवश्यक टीका इस श्लोक में भगवान को 'जगाणंदो' कहे हैं । भगवान जगत को आनंद देनेवाले तो हैं ही, उनका कहा हुआ धर्म भी आनंद देनेवाला हैं ।
भगवानने कैसी जमावट कर दी है ? विचारते ही आनंदआनंद छा जाता है ! अनार्य कुल में जन्म लिया होता तो ? अजैन कुल में या मांसाहारी कुल में जन्म लिया होता तो ? जैन के यहां जन्म लेने के बावजूद ऐसे संस्कारी माता-पिता न मिले होते तो ? भगवानने हमारे लिए कैसी सुंदर व्यवस्था कर दी हैं ? यह विचारते ही आनंद छा नहीं जाता ?
ऐसी सामग्री मिली, संस्कार टिके रहे, उसका कारण पुण्य हैं । पुण्य के कारण भगवान हैं । इसीलिए भगवानने ही यह सब जमा दिया है, ऐसा कह सकते हैं ।
भगवान का धर्म कैसा आनंदकारी हैं ? इनके धर्म का पालन भले आप करो, किंतु आनंद किनको हों ? धर्मी जिन जीवों की रक्षा करे उनको आनंद न हों ? भगवान का जन्म होता है, और समग्र जीव को आनंद होता हैं, यही इस बात का प्रतीक हैं ।
दूसरों को सुख-आनंद और प्रसन्नता दें, यही धर्म से सीखना हैं । एक 'अभय' शब्द में सुख, आनंद, प्रसन्नता वगेरह सब कुछ हैं । भगवान ही नहीं, भगवान का भक्त भी अभयदाता होता है, भगवान का साधु मतलब आनंद की प्रभावना करनेवाला ! जहां जाता हैं वहां पर आनंद की बुआई करते ही जाता हैं । जहां जाता है, वहां प्रसन्नता बिछाते जाता हैं ।
आप दूसरों को आनंद तो ही दे सकते हो, अगर जीवों पर अपार करुणा हों । करुणारहित हृदयवाले को कभी दीक्षा नहीं दे सकते । यदि दे दी गई हो तो रवाना करना पड़ता हैं । एक मक्खी (४ asaanaamaas an asam as soon as कहे कलापूर्णसूरि - ४)