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चरवाहे को अगर पूछे : 'तू इस चमकते पत्थर को क्या करेगा ?' तो उसका जवाब होगा... 'मैं अपने बच्चों को खेलने के लिए दूंगा ।'
धर्म-चिन्तामणि का ऐसा क्षुल्लक उपयोग तो हम नहीं कर रहे है न? ऐसी सामग्री मिली, इसकी क्या प्रशंसा करें? कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरिजी जैसे श्रावकत्व की प्रशंसा करते हैं ।
___ आप और इन्द्र दोनों एक-दूसरे के साथ सौदा करने के लिए तैयार हो जाओ तो इन्द्र तैयार हो जाएगा। समृद्धि-हीन ऐसा श्रावकजीवन भी इन्द्र को अत्यंत प्रिय है, जब कि आप धर्महीन ऐसे इन्द्रासन के लिए ही तड़प रहे हैं ।
धर्म-सामग्री की दुर्लभता का पता चलते ही भावोल्लास हमेशां बढ़ता ही जाएगा ।
परमात्मा की पूजा का साक्षात् फल यही है : चित्त की प्रसन्नता ।
अभ्यर्चनादर्हतां मनःप्रसादस्ततः समाधिश्च । ततोऽपि निःश्रेयसमतो हि तत्पूजनं न्याय्यम् ॥
___ - उमास्वाति शुद्ध आज्ञा का पालन वह भगवान की प्रतिपत्ति पूजा है । मिले हुए इस धर्म-चिन्तामणि को बातों में, नाम की कामना में खो न दें, उस विषय में सावधान रहना हैं ।
चार या दस संज्ञाओं में से कोई संज्ञा हमें पकड़ न लें, वह देखना हैं । प्रभु ही हमें इससे बचा सकते हैं । योग का शुद्ध बीज प्रभु के अपार प्रेम से ही मिलता हैं ।
बीज प्राप्ति भी प्रभु के अपार प्रेम से ही होती हैं । बीज का विकास भी प्रभु के अपार प्रेम से ही होता हैं ।
बीज बोने के बाद किसान देखभाल करने का छोड़ दें, तो क्या हो ? अभी किसान इंतजार कर रहे हैं : कभी वर्षा हो ।
धर्म-बीज में भी गुरु भगवंत की वाणी-वृष्टि जरुरी हैं । नंद मणियार महान श्रावक था, लेकिन भगवान की वाणी-वृष्टि न मिली, गुरु का समागम न मिला तो वाव-कूएं आदि बनाकर वाह-वाह में पड़ गया । मरकर मेंढ़क बना । यह तो अच्छा हुआ कि मेंढ़क ( २ ooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ४)