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नित्यक्रियाकांडरूपचारित्रकी तुलना करनाभी चालु करदीया, आप श्रीका आसरे ३५ वर्षका विद्याभ्यासमे परिश्रम है, स्वसिद्धान्तपर सिद्धान्तका हृदपर्यंत कालसें ६१ की सालपर्यंत परिपूर्णज्ञान हासिलकर विराम कियाहै, और तीर्थ विद्या शास्त्र गुण कला देश सहर ग्रामदिक देशका - लानुसार यथाशक्ति परिश्रम के आधारपरतो आप श्री के परिचयमे आया नहो सातो विरलाहि प्रायें होगा, और आपश्रीका अष्टप्रवचनमाताविषय उपयोग स्मरणशक्ति व्याख्यानशैली प्रश्नोत्तरपद्धति प्रत्युत्तरशक्ति हेतुदृष्टान्तयुक्ति विरोधखंडन विसंवादसमन इन्साफ युक्तायुक्त विवेचन पंक्तिउचारणविनाअर्थशक्ति वचनलाघवादि और धीरकान्तादि अनेक गुण यथार्थपणे वर्त्तमानसमय विद्यमान है, और इससमय तो ऐसा गुणी पुरुष हिंदुस्थान याने आर्यावर्त्तखंड में दूसरा कमहि होगा और इससमय श्रीजैनधर्म उपदेशक आचार्य एकसें एक गुगाधिक है, परंतु देशकालानुसार सर्व गुणगणालंकृत ऐसे विरले पुरुष होते हैं, और श्रीजी की यतिसांप्रदायिकपर्याय मे वर्ष ९ रहना हूवा सो केवल स्वसिद्धान्तपरसिद्धान्त अवगाहन निमित्तहि रहना हूवा, ४५ के नागपुर मे क्रिया उद्धार कीया और जिसमे भी ७ वर्षतो भावचारित्रपर्यायतुलनामेहि रहे, फक्त एक रेलका संघट्टाखुलाथा, उससमय आप श्रीरायपुरसहरमे (२) दोमंदिरोकी प्रतिष्ठाकरी और नागपुरसहर में विराजमान थे, इसलिये इतना बाकीरखाथा, कारण कि वह देश विहारका न होनसें, उस समय आपश्री के श्रीगुरुमहाराजका सहवासयोगथा, वादमे ४१ सालने चेत सुदी १५ को आपश्री के गुरुमहाराजका वियोग हुवा तब हि जादातर संवेग परिणति वढतिहि रहि, बाद श्रीमान् कपूरचंद -
साल
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