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व्यावहारिक संस्कृतव्याकरणादिकग्रन्थपढलिखके हूसियारभया, तब गुरुमहाराजनें जैनसिद्धांतपढाणेयोग्य जाणके, संवत् १९३६ की सालमें आषाढ शुदि १० को यतिसंप्रदायिक दीक्षादी, कारण के पात्र आनेपरअनवसरमेभि सिद्धान्तवाचना देना एसामि सिद्धान्तमें अपवादमार्गसें माना है, कुशिष्यादिको बाचना देना उनोंकेपाससे वाचना लेना सर्वथा निषेध किया है, अविनीत निरंतरविगईभक्षी उत्कटक्रोधी दुष्ट मूर्ख व्युदप्राहित अन्यतीर्थीग्रस्त परिव्राजकादिक, खतीर्थीग्रस्त पासत्थादिक उनोंको वाचनादेना उनोंकेपाससे वाचनालेना करेतो साधु प्रायच्छित्त पावे ऐसा छेद श्रुतमे लिखा है, इत्यादिक विचारके, बहुश्रुत गीतार्थ श्रीगुरुमहाराजनें सांप्रदायिकदीक्षा देके सिद्धांतोंकी वाचनादी, उससमय आपकी अवस्था करीब २३ सालकीथी जब व्रतग्रहणकिया, सर्वसिद्धान्तोंकी क्रमसें वाचना ग्रहण करके स्वसिद्धान्तमें अत्यंत निपुण भये, तब श्री गुरुमहाराजसहित शुद्ध सिद्धान्त विध्यनुसार क्रियोद्धार करणेका परिणाम भया, तब पर सिद्धान्तोंका अवगाहन करते हुवे, दर्शनशुद्ध्यर्थ अनेक देश अनेक शहर प्रामादिकमे जिनेश्वरका दर्शन करते हुवे, पूर्व देश तीर्थों की जात्रा करते हुवे अंतरिक्षपार्श्वनाथतीर्थ कुलपाकतीर्थ केसरियाजीतीर्थ श्री गुर्जरदेशीयतीर्थ मांडवगढ मकसी सामलीया अवंती बिबडोद ना. कोडा लोद्रवा कापेडा फलोधीपार्श्वनाथ मेदनीपुर जवालीपुर करेडा अद्भूतशांतिनाथ देवलवाडा चित्रकूट राजनगर लघुमरुभूमिसंबंधि अनेकतीर्थ आबु प्रभास वलेच मांगरोल जामनगर गिरनार तीर्थ ओसीयां इत्यादि अनेक जिनगणधर मुनि आदि जन्मदीक्षा ज्ञान समवसरण चतु
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