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विघ संघस्थापन निर्वाण आदि अनेक कल्याणक भूमियोंमे प्राचीन सातिशायितीर्थभूमियोंमे परिभ्रमणकरते हुवे और भी अनेक तीर्थपूर्व देशीय गुर्जर बृहत्मरु लघुमरु कच्छ काठियावाड कोंकण लाट वढियार मालव छत्तीसगढ वराड मेवाड सिंधुसौवीर पंचालादि अनेकतीर्थोंकी जात्रा करते हुवे, और अनेक शहर ग्रामादिकमे अनेक प्राचीन अर्वाचीन श्री जैनमंदिरोंके दर्शन शुद्ध भावसें करते हुवे, श्री शत्रुंजयादि तीर्थ भूमि और कल्याणकादितीर्थ भूमियों को स्पर्शन करके आपश्रीनें अपने शरीर और आत्माको पवित्र किया, यथार्थ शुद्धसिद्धान्तका अवगाहनकरके निर्वद्यभाषाके स्वीकारपूर्वक शुद्धरूपणाकरणेकरके अपने वचनकों पवित्रक्रिया पंचमहाव्रत की २५ शुभभावना तथा अनित्यादि १२ भावना मननकरके अपनेमनको पवित्र कीया और दानशीलतपजपसंयमादिकर के त्रिकरणयोगकों पवित्रकिया और यथार्थपणें परसिद्धान्तों का अवगाहन किया, षड्दर्शनका प दार्थ यथार्थ जाणा और परमार्थ ग्रहणकिया और स्वसमय परसमयका अध्ययनकरके, और प्राचीन अर्वाचीन सातिशयितीर्थ भूमियों को और कल्याणकादि तीर्थभूमियोंको स्पर्शकरके अपने समकितकों निर्मलकिया, विनयादियुक्तज्ञानग्रहण और शुद्ध प्ररूपणाकरके ज्ञानको निर्मलकिया, आलोयण प्रायश्चितशुद्धभावसे, शुद्धतग्रहणकर के अखंड पालने सें चारित्रकों निर्मलकिया, वांछारहित बाह्य अभ्यंतर इच्छा निरोधरूपयथाशक्तितपकरके, अपनेतपरूप आत्मगुणकों निर्मलकिया, और सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपरूपमोक्षमार्गको देशकालादिकके अनुसारे यथाशक्ति आराधन करना यहि मनुष्यभवका सार है, इसीलिये आप श्रीनें सम्यग्ज्ञानसहिततपसंयम आराधकरनेका दृढ निश्चय किया, और आप श्री अहोरात्रिकसाध्वाचार विचार
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