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(३९) विद्वान् मी. बार्थना-अभिप्राय मुजब, जैनोनी सांप्रदायिक परंपराओ बौद्धोना अनुकरणरूपे उपजावी काढेली छे. मी. बार्थनी दलील ए छे के-जैन घणी शदीओ सुधी एक नानो संप्रदाय हतो. हुं पुछु छु के-थोडा अनुयायीओ वडे, पोताना मौलिक सिद्धांतो अने परंपराओ सुरक्षित राखी शके छे के, जे धर्मने एक मोटा जनसमूहनी धार्मिक जरूरीआतो पुरी पाडवानी होय ते ? जैनोने पोताना सिद्धांतनुं एटलुं बधुं स्पष्ट ज्ञान हतुं के, न जेवी बाबतमां मतभेद धरावनारने, पोताना विशाल समुदायमांथी जुदा करी दीधा हता. आना प्रमाणमां-डॉ० ल्युमने प्रकट करेली सात निन्हवोनी परंपरा छे. आ सघली हकीकतो उपरथी सिद्ध थाय छे के, जैनोनी सूक्ष्ममां सूक्ष्म मान्यता पण सुनिश्चित स्वरूपवाली हती. जेवी रीते जनोना धार्मिक सिद्धांतो सिद्ध थई शके छे, तेवीज रीते ऐतिहासिक बाबतो पण सिद्ध थई शके तेवी छे. जो के दरेक संप्रदायने-पोतानो संप्रदाय, आप्त पुरुषथी उतरी आवेलो छे–एम बताववाने गुरुपरंपरानां नामो उपजावी काढवानी जरूर पडे छे. परंतु कल्पसूत्रमां-स्थविरो, गणो, अने शाखानी नामावली छे, ते कल्पी काढवामां जनोने कोइ पण प्रकार- प्रयोजन होय तेम हूं मानी शकतो नथी. आटलं सिद्ध
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