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(८६) तब तो शूद्रोंके लिये मनुने देशकी यथेच्छ आज्ञा देदी अब क्या चाहिये ।
बस तो इस रीति पर यह भी अज्ञोंकी दन्त कथा है कि जैन और बौद्ध एकसमान हैं। सज्जनों ! बुरा न मानों, और बुरा माननेकी बातही कौनसी है ? जब कि खाद्यखण्डनकार श्रीहर्षने स्वयं अपने ग्रन्थमें बौद्धके साथ अपनी तुलना की है,
और कहा है कि हम लोगोंसे [ याने निर्विशेषाद्वैतसिद्धान्तियोंसे ] और बौद्धोंसे यही भेद है कि हम ब्रह्मकी सत्ता मानते हैं, और सब मिथ्या कहते हैं, परन्तु बौद्धशिरोमणि माध्यमिक सर्व शून्य कहता है, तब तो जिन-जैनोंने सब कुछ माना उनसे नफरत करने वाले कुछ जानते ही नहीं, और मिथ्या द्वेषमात्र करते हैं यह कहना होगा। ___ सज्जनों ! जैनमतसे और बौद्धसिद्धान्तसे जमीन आसमानका अन्तर है। उसे एक जान कर द्वेष करना यह अज्ञजनोंका कार्य है। सबसे अधिक वे अज्ञ हैं कि जो जैनसम्प्रदायसिद्ध मेलोंमे बिघ्न डाल कर पापभागी होते हैं।
सज्जनों ! आप जानते हैं जैनोंमें जब रथयात्रा होती है १ विपरीत विचार.
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