Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

View full book text
Previous | Next

Page 395
________________ ( १३० ) पण्डित पुरुषो जैनमतना स्वरूपने बणा प्रकाश स्वरूपथी जोई शकशे तेमां शक नथी. तेमां पण पांच सात लेखो तो मैनोना खास मौलिक सिद्धान्त स्वरूपनाज छे एवी अमारी समन थएली छे. वाचक वर्ग पण तेवा स्वरूपथी जोई शकशे एवी अमारी धारणा छे. इत्य ं विस्तरेण. संग्राहकमुनिश्री अमर विजयजी. महाराज. Jain Education International } For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408