Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

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Page 400
________________ उपरोक्त महाशयोए आ पुस्तक छपाववामां अमूल्य साहाय्य आपीने परोपकारवृत्ति दर्शावी छे माटे तेमनुं कृत्य अनुमोदनाने पात्र छे. बीजा पण सद्गृहस्थो आ मार्गर्नु अनुकरण करशे तो विशाल जैनसाहित्यने खीलववामां वार नहीं लागे. .. आ पुस्तकनी किंमत केवल नाममात्रनी रुपियो पोणो राखवामां आवी छे, उत्पन्ननी रकम ज्ञानखातामांज जवानी छे. ॥ इति शम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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