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(९८) छे, कारण के आ संवन्धनो शोध में हमण ज शरु को छे. तोपण जैनधर्म अने नीति ए विषय उपरना हेस्टिंग्स साहेबना विस्तृतविवेचनवाळा ग्रन्थमां अने प्रो. जेकोबीना निबन्धमा जे एक विधान जोवामां आवे छे तेना उपरथी प्रस्तुतविषयना शोधनी योग्य दिशा समजी शकाय तेम छे. आ निबन्धमा " जैनधर्मे पोताना काईक मतो प्राचीन जीवदेवना स्वरूपवाळा धर्ममाथी लीधेला होवा जोईए” एटुं कहेलु होवाथी प्रत्येक भागी तो शुं पण वनस्पति अने खनिज पदार्थो पण जीवस्वरूप ज छे. एवो जे जैनधर्मनो तत्त्व छे तेनी साथे ते मळतो होवाना कारणथी ते घणो महत्त्वनो छे.
आ कारणथी जैनधर्म ए अत्यन्त प्राचीन छे ( कोई पण धर्म अनादिनो छे एम कोई पण विचारी पंडित कहेता नथी ) एम मने भासमान थवाथी तेज वातने हुं शीघ्रपणे शास्त्रीयदृष्टिथी सिद्ध करवानो डुं. आ धर्मनु मूळ हिंदुस्थानमां आर्य पूर्वकालना प्राचीन लोको सुधी पहोंचीने आगळ जतां ते धर्मे आर्यधर्ममांथी जेटलं जेटलं अत्युत्तम अथवा छेवट जे आपणाथी सारूं देखायु ते बधुंए ग्रहण कर्यु अने आर्यधर्मना ब्राह्मणीयपंथना बराबर तेमणे पोतानी वृद्धि करी लीधी. जैनोना निर्ग्रन्थोनो उल्लेख वेदोमां
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