Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

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Page 379
________________ (११४) है कि हम देहधारी संसारी जीव शरीर तथा आत्मासे बने हुए हैं अर्थात् जड़ और चैतन्य मिश्रित हैं। अपने चारों और जो हम सब जीव देखते हैं जैसे मनुष्य, बिल्ली, कुत्ते, वोडे, वृक्ष यह सब शरीरसहित आत्मा दोनों एक हैं तो भी परस्पर भिन्न हैं। मेरा शरीर है सो मैं स्वयम् नहीं हूं यह भेद जानना अत्यन्त आवश्यक है, यह शरीर नहीं किन्तु आत्मा है. जिसे बुद्धिमान व्यक्ति ( Consience, Santienty entity ) कहता है। आत्मा ही सब कुछ जानता है शरीर कुछ नहीं जानता। जलाका जीवन ज्ञानसहित, विचारसहित और प्रामाणिक है और जिस परिणाममें विचार सत्य होते हैं वहीं तक जीवन भी सत्य है। आत्मद्रव्य। वस्तुद्रव्य अपने मूलगुणोंसे भिन्न कभी नहीं रह सकती अर्थात् हम गुणको द्रव्यसे यथार्थमें पृथक् नहीं कर सकते. विचाररूपमें ऐसा अवश्य सम्भव है । हम देखते हैं कि मरते मय शरीर अपनी सुधि खो देता है. अस्तु, यह सिद्ध होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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