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स्थित इन अस्वाभाविक शक्तियोंके कारण करता है क्योंकि वे सन्देहवश दुष्कर्मोको अपने गुण समझ लेता हैं। मनुष्य अज्ञानता अथवा दुर्बुद्धिके कारण पापकर्म करता है परन्तु आत्मा तो स्वभावसे ही सर्वज्ञ है. अस्तु, उसके सब विचार सत्य ही होते हैं। मेरे ध्यानमें पापकर्म करते समय कोई मनुष्य यह नहीं जानता होगा कि मैं पाप करता हूं। यदि विचार करता होगा तो यही कि मैं भला करता हूं अन्यथा ऐसा कदापि नहीं करता, अस्तु. यह दोष उसकी दुर्बुद्धिका ही रहा। ऐसे ही यदि कोई मनुष्य कपट करता है तो प्रसंगवश वह उसे भी अच्छा ही समझ कर करता है । परन्तु समय पड़ने पर जब वह समझ लेता है कि यह कर्म बुरा है तब वह उसे छोड़नेका प्रयत्न करता है और अन्तमें शुद्ध इच्छा होने पर छोड़ भी सकता है।
कर्मोका मूल। ऊपर लिखित अस्वभाविकवलप्रवाह कर्मोके मूल अर्थात् जड़ हैं और वे अत्यन्तसूक्ष्म होती हैं उनको यह कर्म अपनेमें मिला देते है और उसके परिणामका अनुभव आत्माको करना पड़ता है । अस्तु, कतिपय परिणाम उत्तम तथा कितनोंका बुरा
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