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( १२२) होगई तो सदा बनी ही रहती है. इन चारोंमेंसे प्रत्येक रूपकी अवधि मर्यादित है अर्थात् आयु नियमित है कि जिसका अन्त कभी न कभी आता ही है यद्यपि यह काल स्वर्ग नर्कमें तो विशेष होता है तथापि अन्त तो है ही, परन्तु उस विशुद्ध शरीररहित स्थितिमें जीवनकी लम्बाई अमर्यादित है कि जिसका अन्त कभी नहीं आता और यह स्थिति तब ही प्राप्त होती है जब हमारी विकाशपानेकी स्थिति पूर्णदशा पर पहुंचती है
और यह दशा ही जीवनका लक्ष्य ( अर्थात् Gool है ) और प्रत्येक व्यक्तिको यह प्राप्त हो सकती है और क्रम २ से विकाश पाते २ वहां तक पहुंचती है। इस अन्तिम स्थितिके प्राप्त होनेके लिये यदि कोई जीवन उपयोगी है तो वह मनुष्यजीवन है।
चार दुर्लभता। मुझे यहां याद आता है कि चार बातें दुर्लभ हैं ( १ ) मानुष्यजीवन प्राप्त होना दुर्लभ है. ( २ ) मनुष्यजीवन प्राप्त होने पर सत्य उपदेश प्राप्त होना. ( ३ ) सत्य उपदेश मिलने पर उस पर श्रद्धा होना. और ( ४ ) श्रद्धा होने पर उस पर मनन करके उसके अनुसार चलना यह चारों बातें दुर्लभ हैं।
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