Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

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Page 388
________________ (१२३) जिस स्थितिमें हमने जन्म लिया है वह कोई अकस्मात हमको नहीं मिली है। पूर्व जन्ममें जैसी करणी करी हो वैसा . ही पाश्चात्य जीवन प्राप्त होता है । अलबत्ता उपदेश ऐसा है कि.. जितने ही हम भले या बुरे होते हैं उतना ही हमको सुख या दुःख मिलता है । ईसाई लोग भी यही मानते हैं तथापि जहां के . लोग यह मानते हैं कि नारकीजीवन सदैव नित्य रहता है वहां जैनी यह मानते हैं ति नर्कके जीवनका भी कभी न कभी अन्त आजाता है। यह उपदेश कहांसे लिया गया है ? जिस भांति ईसाई ( खीष्टीय ) ईसाके अनुगामी है उसी भांति जैनी महावीर जिनेश्वरके माननेवाले हैं। महावीरनिन ईसाके पूर्व छठवीं शताब्दीमें उत्पन्न हुए थे. उनका जन्म भारतमें हुआ था और अपनी आयुके पिछले ३० वर्ष इन्होंने उपदेश देनेमें व्यतीत किये. उनको जन्मके साथ २ ही अवधिज्ञान विश्वदर्शन तथा विश्वश्रवण आदि लब्धिये प्राप्त हुई थीं । तत्पश्चात् उनको वह परमज्ञान प्राप्त होगया जिससे दूसरेके हृदयका भाव जान सकते थे. ४२ वर्षकी आयु होने पर तपश्चर्या तथा अपने ज्ञान विकाश होनेसे वे सर्वज्ञ होगये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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