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काल तो साधारणतया सत्य गिना जाता है परन्तु देश' तो सत्य ही है और जो सत्य है सो अवश्य स्थित है। चार पदार्थ अर्थात् आकाश (देश) काल, जीव और अवैतन्य परमाणु, यह कोई किसीके पैदा किये हुए हों यह आवश्यक नहीं क्योंकि पदार्थोंका स्वभाव है कि वे स्वयं स्थित रहे।
वे अनादिकालसे थे, हैं, और रहेंगे । ईसाईधर्ममें यह विचार एक जीवके लिये मानते हैं परन्तु जैन प्रत्येक जीवके लिये यह विचार स्वीकार करता है अर्थात् आप, मैं, कुत्ता, बिल्ली इत्यादि सर्व प्राणी नित्य हैं।
यदि वर्तमानकालकी रसायनिकशोधकी दृष्टिसे जद्रव्य अन्तिमपरमाणुको आप न गिने परन्तु वह अधिकतरसूक्ष्मपरमा-- णुओंका बना हुआ है । अस्तु, इसके लिये हमको जडद्रव्यका अतिसूक्ष्म अन्तिमभाग, या कोई दूसरा शब्दव्यवहार करना चाहिये।
जीव और जड़। अब अपने जीवके सम्बन्धमें जो हम अभीके संसारसे शोध करना आरम्भ करें तो पहिली ध्यान देने योग्य बात यह
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