________________
( १०४ )
आ प्रमाणे आपणे जोईए तो धर्मनी उपरनी हद ( मर्यादा ) माळी गई, अने तेना उपरथी मनुष्यविषयकना बीजा विचारो अथवा भावनाओना संबंधे निर्णय करवामां फावी शकीशु. पछी ते विचारो के भावनाओ धर्मनामने छाजे तेम होय के नहीं पण धर्मनी सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मनुं एटलुंज एक महत्व नथी परन्तु आ दृष्टिथी जोतां जैनोनुं तत्त्वज्ञान, नीतिज्ञान, अने तर्कविद्या पण देखीए तो तेटलांज महत्ववाळां छे.
आ विषयनो एथी सविस्तर विचार करवाने मने आज वखत - नथी. तोपण जैनधर्मना श्रेष्ठपणानां हजु कांईक थोडां लक्षणो कहेवां जोईएज. अनन्तसंख्यानी उत्पत्ति तेमना लोकप्रकाश नामना ग्रन्थमां कहेली छे ते हालना गणितशास्त्रनी उत्पत्ति साथै अअत्यन्त मंळती आवे छे तेमज दिक अने काल एमना अभिन्नत्वनो जे प्रश्न ईन्स्टीननी उत्पत्तिथी आ तरफना शास्त्रज्ञोमां वादनो विषय थई रहेलो छे तेनो पण निवेडो जैनतत्त्वज्ञानमां करेलो होवाथी तेना निर्णयनी तैयारी तेमनामां करीने मुंकेली छे.
•
हवे जैनोना नीतिशास्त्रनी बेज बातोनो हुं अहिंया उल्लेख करूं छं. तेमना शास्त्रमां ते विषयनो बहु पूर्णताथी विचार करेलो छे तेमांथी पहेली बात ए छे, के जगत्मांना सर्व प्राणिओने सुख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org