Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

View full book text
Previous | Next

Page 368
________________ (१०३) पूज्य, वन्दनीय थयो छे. जैनोनी देव विषयक कल्पना सुप्रसिद्ध जर्मन महातत्त्वज्ञ नित्से ( जेओने हु अनेकवावतोमा पोताना अध्यात्मगुरु तरीके मार्नु ळु एम मने कबूल कर जोईए) एमनो सुपरमेंन एटले मनुष्यातीत कोटीनी कल्पना साथे आ बात मळती आवे छे, अने आज बाबतमा मने जैनधर्मनो अत्युदात्त स्वरूप देखावा लाग्यो छे, असे जे लोको जैनधर्मने अनीश्वरवादी समजीने तेमना धर्मत्व उपर हल्ला करीने चढाई करवानुं धारे छे तेमनी साथे हुं जोरथी विरोध करवाने तैयार हूं. आ बावतमां मारो मत एवो छे, के बौधिक विषयोनी उत्तम परिपुष्टि करवाने माटे अवश्य तेटलाज उच्चतम ध्येयने जैनधर्मवाळाए हाथे धर्यो छे. देवनी कल्पना धर्मवाळाओने अवश्य होवाने लीधे पोताना धर्मपणाने कायम राखवाने माटे धर्मना मुख्य लक्षणो तेमणे आपणामांथी जावा दीधेलांज नथी. आ बधां कारणोने लीधे जैनधर्मने आर्यधर्मोनीज नहीं पण एकन्दर सर्व धर्मोनी परममर्यादावाळो समनीए तोपण कोई प्रकारनी हरकत आवे तेम नथी. आ परमतत्त्वनी सीमावाळा स्वरूपना मूळथीज धर्मोनी ६. सरखामणीना विज्ञानमां जैनधर्मने मोटुं महत्व प्राप्त थएवं छे. १ ध्यान करवाने योग्य देवनी मूर्तिने. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408