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(१४३) मणिलालभाईए लख्यु के- “ पुराणमावनामां दवाई रहेढे तत्त्वदृष्टिनुं ज्ञान बौद्ध अने जैनधर्मना प्रचारथी जागृत थयुं." तो भहीयां विचार थाय छे के वेदनी श्रतिओ अने स्मृतिओथी प्रवतैला यज्ञकर्मन नाम पुराण भावना कही छे. अने ते भावनायी तो पशुओनी कतल थवानुं प्रसिद्धन हतुं, तो पछी तेमां दवाई रहेली तत्त्वदृष्टि घणा वखत पछी जागत केवा प्रकारथी थई मानवी ? शं ते वखतना मोटा मोटा ऋषिओ ते तत्वदृष्टिनं ज्ञान जोई न शक्या हता तेथी ते ज्ञान बहार न आव्युं हतुं ? अथवा एक ईश्वरनी शोधमां ने शोधमां-घडीमां आ देव तो घडीमा पेलो देव जेम बधा ऋषिओ भज्या करता हता तेम पोताना अज्ञानपणाथी जीवोना उपर कतल चलावी तेमांथी तत्त्वदृष्टिनुं ज्ञान शोध्या करता हता तेथी ते ज्ञान बहार न आव्यु हतुं ? आमां समजवू शं?
आगल जतां बीजा फकरामां लख्यु के-“ उपनिषदोनो ज्ञानमार्ग सर्वथा सतेन थई-जैनोना जीवाजीव तथा कर्मधर्मवाद परत्वे घणो बहार आव्यो. आम शंकारूप बौद्ध तथा जैन धर्मोए दर्शनोना परम धर्मोनो रस्तो कर्यो छे. तत्त्वदृष्टिने खरेरूपे प्रवर्त्तवानो मार्ग को छे. अने ब्रह्मज्ञाननो उदय सूचक्यो छे".
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