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(७४) ( Metaphysics ) विकासक्रममां गुणनामना पदार्थनो जेवो जोईए तेवो खुल्लो अने स्पष्ट ख्याल थई चूक्यो नहोतो; परन्तु ते पदार्थ द्रव्यपदार्थमांथी उत्क्रान्त थई रह्यो हतो एम लागे छे. जे जे वस्तुने आपणे गुण तरीके ओळखीए छीए ते, ते वखते भूलथी वारंवार द्रव्य तरीके मनाई जती अने केटलीक वखते द्रव्य साथे तेनुं मिश्रण पण थई जतुं. वेदान्तमां परब्रह्मने शुद्धसत्ता, ज्ञान, अने आनन्दरूप स्वाभाविकगुणथी संपन्न नहीं, परन्तु सत्, चित्, अने आनन्दस्वरूपज मानवामां आव्युं छे. सांख्यमां पुरुष अथवा आत्माना स्वभावनुं वर्णन करती वखते तेने ज्ञान अथवा तेजोरूप बताववामां आव्यो छे. अने जो के-सत्त्व, रजस्, अने तमस् , ए त्रण पदार्थाने गुणरूपे गणाव्या छे खरा, परन्तु गुण जे लक्षण आपणे स्वीकारीए छीए ते अनुसार ते गुणो थई शकता नथी. . प्रो० गाना जणाव्या प्रमाणे वास्तवमां ते मूळप्रकृतिना अवयवोज छे. आ ज प्रकारना सिद्धान्तने लईने सामान्यरीते जैनोना प्राचीनसूत्रोमां द्रव्य अने तेना पर्यायोनो ज मात्र उल्लेख करेलो होय छे. सूत्रोमां गुणपदार्थनो ज्यारे कोईक न ठेकाणे उल्लेख भएलो मळी आवे छे. त्यारे पाछळमा बीजा बधा ग्रंथोमां
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