Book Title: Jainetar Drushtie Jain
Author(s): Amarvijay
Publisher: Dahyabhai Dalpatbhai

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Page 348
________________ (८३) परन्तु उलूकशब्द जैनोए रोहगुत्तना गोत्रने अर्थात् कौशिकने' उद्देशीने लखेलो होय तेम जणाय छे. कौशिक शब्दनो अर्थ पण धुवडज थाय छे. परन्तु आ बाबतमां जैनोनी दन्तकथा करतां सर्वब्राह्मणसंमत परंपरा वधारे पसंद करवा लायक होवाथी, आपणे जैनोना परंपरागत कथनने एवी रीते समजावी शकीए के रोहगुत्ते आ वैशेषिकदर्शनने नवु प्ररूप्युं न होतुं परन्तु पोताना नैन्हविकविचारोने समर्थित करवा वैशेषिकमतनो मात्र अंगीकार को हतो. आ भागमां भाषांतरित करेला उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांग सूत्रना विषयमा प्रो० बेबरे Indische Studien, Vol. XVI p. 259 ff. अने Vol. XVII p. 43 ff. मां जे लख्युं छे ते उपरान्त मारे कांइ विशेष उमेरवानुं नथी. आ बन्नेमां, सूत्रकृतांग ए बीजूं अंग गणाय छे अने जैनआगमोमां अंगोने प्रथम-प्रधान-स्थान आपवामां आवे छे; तेथी ते उत्तराध्ययनसूत्र के जे प्रथम मूळसुत्र गणातुं होई सिद्धान्तमां तेने छेल्लुं स्थान मळेलु छे, तेना करतां वधारे प्राचीन छे. चोथा अंगमां आपेला १ भाग १ पृ. २९०, परन्तु प्रो० ल्युमने I. C. P. 121. उपर भाषान्तर करेली एक दन्तकथामां तेनुं गोत्र 'छऊल्लू' तरीके लख्युं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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