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तथा केटलुक तात्त्विक ज्ञान आपवानो पण छे. पाखंडी मतोनुं घणाक ठेकाणे सूचनमात्र करवामां आव्युं छे परन्तु तेमने विस्तृतरीते चर्चवामां आव्या नथी. ते दिशामांथी आवता विघ्नो जेम जेम वखत जवा मांड्यो तेम तेम स्पष्ट रीते ओछा थता गया अने जैनधर्मनी संस्थाओ सुदृढरीते स्थिर थती गई. नवीनसाधुओने जीवाजीवर्नु बराबर ज्ञानवधारे उपयोगी मनातुं होय तेम लागे छे. कारण के आ विषय उपर एक मोटुं अध्ययन आ ग्रंथना अन्ते आपवामां आव्युं छे. जो के आ आखा ग्रन्थमां आवेला जुदा जुदा बधा अध्ययनोनी पसंदगी तथा गोठवणीमां कांइक योजना जेवी देखाय छे खरी परन्तु ते सघळां अध्ययनो एकज करीना रचेलां छे के लेखी अगर मौखिक परंपरागत साहित्यमांथी चूंटी काढेलां छे ए एक विचारणीय बाबत छे. कारण के आवा प्रकारचें साहित्य जैनसंप्रदायमां, तेमज अन्य संप्रदायोमां पण धर्मशास्त्रग्रन्थोनी रचनानी पूर्वे वर्तमान होवू ज जोइए मारुं एम मानवू छे के आ अध्ययनो प्राचीनपरंपरागतसाहित्यमांथीन उद्धत करी लीधेलां छे, कारण के तेनी वर्णनशैली तथा भाषाशैली परस्पर भिन्न होय तेम स्पष्ट जणाई आवे छे. अने ते बाबत एकन कर्तानी कल्पनासाथे संगत थई शकती
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