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(७५) ते नियमित रीते वर्णवेलो होय छे. आ उपरथी एम स्पष्ट जणाय छे के ते पाछळना कालमां स्वीकारवामां आव्यो होवो जोईए, अने तेनुं कारण न्याय वैशेषिक दर्शनोना तत्त्वज्ञान अने साहित्यनी जे असर धीमे धीमे भारतवर्षना वैज्ञानिकविचारो उपर थती हती तेज होवू जोईए. पर्याय एटले विकाश अगर अवस्थांतरनी मान्यतामां गुण जेवा स्वतंत्रपदार्थने स्थान ज मळी शके तेम नथी. कारण के द्रव्य दरेककाळमां तेना पर्यायना रूपमा ज रहे छे, अने तेथी करीने पर्याय गुणात्मकज होय छे; अर्थात् पर्यायोनी अंदर गुणोनो समावेश थई न जाय छे. अने आज विचार प्राचीनसूत्रोमां लीधेलो होय तेम जणाय छे. अन्य एक उदाहरण, जैनोए जे अद्रव्यत्वयुक्त पदार्थ उपर द्रव्यत्वनो आरोप करी, वास्तविकरीते जे वस्तु गुणना वर्गमां आवी जाय छे तेवी 'धर्म' अने ' अधर्म' एबे वस्तुओ, विषयक छे आ के वस्तुओने जैनोए द्रव्य तरीके वर्णवी छे के जेनी साथे जीवनो संबंध रहेलो होय छे'. आ द्रव्योने आकाशनी साथेन संपूर्ण
.१ आ कल्पना मूळ वैदिक हिंदुओनी हती, तेम ओल्डनबर्ग पोताना Die Religion des veda नामना पुस्तकना ५. ३१७ उपर जणाव्युं छे.
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