________________
(१८८)
आ उपर लखेली बत्रीशीमां सर्वज्ञनी स्तुतिद्वारा परमात्माना स्वरूपनुं वर्णन करी बतावेल छे. तेवा योग्य परमात्माना कथन करेला यथार्थ तत्त्वोने ग्रहण करवा विचारी पुरुषो प्रेराय ते स्वभाविक छे पण यद्वातद्वा पुरुषोना कहेला यद्वातद्वा तत्त्वोने विचार कर्या वार केवी रीते मानी शकाय ? कां छे केश्रुतिविभिन्ना स्मृतयो विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम्। धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः॥
भावार्थ वेदनी श्रुतिओ भिन्न भिन्न कथन थएली छे, म स्मृतिओना मत पण मळता नथी, न तो कोई तेवो ऋषि . यएलो छे के जेनुं वचन प्रमाणिक थएवं छे, धर्मनो तत्त्व न जाणे कई गुफामां मुकी गया छे, छेवटनो रस्तो एन छे के महापुरुषो गया होय ते मार्गे चाल्या जर्बु।।
___सज्जनो ! जैनधर्मवाळाओने आ श्लोकमां करेली उदासीनता रहेती नथी, केमके-सूक्ष्ममा सूक्ष्म तत्त्वोनो परस्पर विरोधरहित विचार एकन सर्वज्ञ पुरुषना मुखथी प्रकट थएलो अने सर्व विचारी पुरुषोने अक्षरे अक्षर मान्य थएलो छे आम होवा छतां पण जणाक्वामां आव्यु छे के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org