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विधोना जैनसूत्रोमा घणे ठेकाणे उल्लेखो थएला छे अने ते उल्लेखो एवी सरळ रीते थएला छे के जेथी करीने तेनी सत्यासत्यताना संबंधमां शंका उठाववाने कारण मळतुं नथी. उत्तराध्ययनना २३ मा अध्ययनमा जुना अने नवा संप्रदायनो परस्पर मेळ केवी रीते थई गयो हतो ते बतावनारी एक कथा आ विषयमा घणीज अगत्यनी छे. केशी अने गौतम के जेओ बन्ने जैनधर्मना बे संप्रदायोना प्रतिनिधि तथा नेता हता, तेओ पोताना शिष्यपरिवार सहित एक वखते श्रावस्तिपासेना उद्यानमां भेगा मळे छे अने महाव्रतोनी संख्याविषयक तथा सचेलकाचेलक अवस्थाविषयक तेमना धार्मिकमतभेदो वधारे विवेचन का शिवाय मात्र सहन समजावीने दूर करवामां आवे छे. अने त्वराथी मौलिक नीतिविषयकविचारोना संबंधमां प्रत्येक पक्ष दृष्टांतो द्वारा एक बीजाना विचारो समनी समजावी निःशंक बनी संपूर्ण एकमत याय छे, बन्ने संप्रदायो वच्चे काइक मतभेद जेवू जोवामां आवे छे, परन्तु परस्पर द्वेष या वैर बिलकुल जोवातुं नथी. जो के प्राचीन संप्रदायना अनुयायिओने 'पंचमहाव्रत प्रतिपादनार ' महावीरना धर्मनो स्वीकार करवो पच्यो हतो, ए वात खरी छे; तोपण तेओ पोतानी केटलीक जुनी रूढिओने पण वळगी रह्या हता. खास करीने वस्त्र वापरवाना विषयमां के जे रूढिनो महावीरे त्याग
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