________________
(२२) आपणी उपरोक्त तपासनुं परिणाम जो प्रमाणिकताने पात्र जनतुं होय, अने ते बनवुज जोईए कारण के तेना बाधक प्रमागोनो अभाव छे-तो वर्तमान जैनसाहित्यनी उत्पत्तिनो समय ई. स. पूर्वे लगभग ३०० वर्ष पहेलां अथवा ए धर्मनी उत्पत्ति प्रछी लगभग बे शताब्दी पहेलां मूकी शकाय नहीं परन्तु आ उपरथी एम तोखास कांई मानी लेवानी जरूर नथीज के जैनो पासे पोताना अन्तिमतीर्थकर अने सिद्धांतरचनाना आ समय वच्चेना
अन्तराळमां, एक अनिश्चित अने असंकलित धार्मिक तथा पौराणिक परंपरा उपरांत खास आधार राखवा योग्य वधारे सुदृढ धर्मसाहित्य हतुंज नहीं. कारण के एम जो मानवामां आवे तो पछी जैनपरंपरानी विश्वसनीयताना विषयमां ने विरोधदर्शक प्रमाणो मी. बार्थे रन्जु करेलां छे ते वास्तविकमां पायाविनानां छे एम कही शकाय नहीं.
तथापि एक बाबत अहीं ध्यानमा लेवा लायक छे, अने ते ए छे के श्वेताम्बरो अने दिगम्बरोए बन्नेनुं एम कहेवु छे के अंगो सिवाय पहेलांना कालमां तेनाथी पण वधारे प्राचीन एवां चौद पूर्वो हतां अने ते पूर्वोनुं ज्ञान क्रमथी नष्ट यतुं थतुं अंते सर्वथा नष्ट थई गयुं हतुं. चौद पूर्वोना विषयमा श्वेताम्बरोनी मान्यता आ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org