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सिद्धांतनी जरूर जणाई हशे अने तेने परिणामे, मारुं मानवु छे के, नवा सिद्धांतनी रचना अने जूना सिद्धांतनी (पूर्वोना ज्ञाननी) उपेक्षा थवा पामी हशे. ___प्रो. बेबर दृष्टिवाद अंगने नष्ट थवामां एवं कारण जणावे छे के श्वेताम्बरसमाज ज्यारे एक समये एवी अवस्थाए आवी पहोंच्यो हतो के जे वखते तेने पोताना ( प्रचलित) विचारो अने ते ग्रन्थमा ( दृष्टिवादमां ) आलेखित विचारोनी वच्चे अत्यंत अनुपेक्षणीय अंतर स्पष्ट देखावा लाग्युं, त्यारे ए चौद पूर्वोवाळु दृष्टिवाद अंग उपेक्षाने पात्र थयुं हतुं. परन्तु प्रो. बेबरनी आ कल्पनानी विरुद्ध श्वेताम्बरोनी माफक दिगम्बरो पण पोताना पूर्वी अने ते उपरांत अंगो सुद्धांने व्युच्छिन्न थएलां जणावता होवाथी, हुं तेमना मतने मळतो थई शकतो नथी. तेमन निर्वाणनी तुरतज पछीनी वे शताब्दीमां जैनसमाजे एटली बधी झडपथी प्रगति करी लीधी होय के जेथी ते समाजना बन्ने मुख्य संप्रदायोने पोताना पूर्वसिद्धांतनो त्याग करवा जेटली आवश्यकता जणाई होय, एम पण मानी बेस, तद्दन असंभवित लागे छे, बीजी ए पण बाबत लक्षमा राखवा योग्य छे, के जैनधर्ममां
१ Indische Studien, XVI, p. 248.
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