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(१८६) दयासूनृतोऽस्तैयैनिःसङ्गमुद्रा
तपोज्ञानशील गुरूपास्तिमुख्यैः । मुमैरष्टभिर्योऽय॑ते धाम्नि धन्यैः
स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥ ३० ॥ भावार्थ-क्ष्या १ सत्यवचन २ पारका धनथी दूर रहेवू ३ परिग्रहथी मुक्त ४ इच्छानो रोध ५ तत्त्वनो बोध ६ ब्रह्मवत ७ गुरुनी सेवा ८ ए आठ गुणनी प्राप्तिरूप पुष्पोथी पोतानी ज्ञानज्योतिमा पुण्यवंत पुरुषो जे परमात्माने पूजी आठ कर्मनो क्षय करी रह्या छे ते एकन जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ ॥ ३० ॥ महाधिनेशो महाज्ञामहेन्द्रो
महाशान्तिभर्ता महासिद्धसेनः । महाज्ञानवान् पावनीमूर्तिरर्हन्
स एकः परात्मा गति जिनेन्द्रः ॥ ३१ ॥ भावाथ-जे अर्हन् भगवान् महान्योतिरूप ऋद्धिना स्वामी छे, महाज्ञा करवामां महेन्द्र छे, महाशान्तरसथी भरेला छे, परम सिद्धोनी सेनावाळा छे, आ ठेकाणे सिद्धसेन एवँ कविए
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