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के प्राचीन समयमा पुस्तकोनो बिलकुल उपयोग थतो नहतो एम आपणने बीनी हकीकतो उपरथी पण जणाई आवे छे. ब्राह्मणो तो लिखितपुस्तक करतां पोतानी स्मरणशक्ति उपरज विशेष आधार राखता हता. अने निःसन्देहरीते जैनोए तेमन बौद्धोए तेमनीज आ प्रथानं अनुकरण कयु हतुं परन्तु अत्यारे जैनयतिओ पोताना शिष्योने शास्त्र शीखवती वखते लिखित पुस्तकोनो उपयोग अवश्य करे छे. आ उपरथी आपणे मानवू पडे छे के शिक्षणपद्धतिमां थएलो आ फेरफार देवर्द्धिगणिने आभारी छे, एम बतावनारो वृद्धसंप्रदाय तद्दन साचो छे. कारण के आ बनाव बहुज महत्वनो होवाथी मुली शकाय तेम नथी. प्रत्येक आचार्यने अथवा तो छेवटे प्रत्येक उपाश्रयने आ पवित्र आगमोनी नकलो पूरी पाडवा. माटे देवर्द्धिगणिने सिद्धांतना पुस्तकोनी खरेखर घणी मोटी संख्या तैयार कराववी पडी हशे. हवे देवर्द्धिगणिए सिद्धांतने पुस्तकारूढ कराव्यो एवो जे लेखी संप्रदाय मळे छे तेनो भावार्थ प्रायः उपर प्रमाणेनो ज होवो जोईए कारण के एतो भाग्येन मानी शकाय तेQ छे के तेनी पहेलां जैनसाधुओ जे काई कंत्य करता हशे तेने सर्वथा नज लखता होय. ब्राह्मणो वेदनुं अध्ययन करावधामा लिखित
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