________________
( १५० )
अने बीजा टुकडाथी पृथ्वी उत्पन्न थई. दिशा विगेरेनां पण जुदा जुदां नाम पडयां पछी १ अग्नि, २ वायु अने ३ सूर्य पण उत्पन्न थया एत्रणथी - ऋग्वेद, यजुर्वेद, अने सामवेद, पण यज्ञनी सिद्धिने माटे उत्पन्न थया. पछी-तप, वाणी, रति, काम, क्रोधादिकने उत्पन्न कर्या पछी सुख, दुःखादिकनी योजना करी. पछी पोताना - मुख, हाथ, जंवा अने पगयी चारो वर्ण उत्पन्न कर्या. पछी पोताना शरीरना बे भाग करीने स्त्री अने पुरुषरूपे बनीने विराट्रूपने वारण कर्यु. पछी - दश मुनियो, सात सुनियो, देवताओ, कीटपतंगादिकनी उत्पत्ति करी दीधी. " ए वर्णन मनुस्मृतिमां ऋगवेदना मतथी प्राये मळतुं कहेलुं छे. ॥ ४ ॥
कोइ कहे कालीकी शक्ति, बाकी न्यारी न्यारी चतुराई; लिंगपुराणे शिवजी के बदनसे, विष्णु ब्रह्मादिकठाई बा.५॥
भावार्थ - " कालीदेवीए कयूं के हुं आदिशक्ति थईने बीजरूपे थई हुं अने पहिले शिव अने शिवनी शक्ति रूपे उत्पन्न थई. पी विष्णु अने विष्णुनी शक्ति रूपे उत्पन्न थई. तेथी आ बघा सृष्टिनी उत्पत्तिना कारण रूपे हुंज भयेकी हुं. " ए कालीदेवीना माटे बीजा ग्रंथमां एस पण ख्युं छे के- "कालीदेवी छे ते आदि शक्ति छे.' अने ए देवीए ऋण इंडी उत्पन्न कर्या,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org