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(१७५) न पक्षी न सिंहो वृषो नापि चापं
न रोषप्रसादादिजन्मा विकारः । न निन्द्यैश्चरित्रैर्जने यस्य कम्पः
स एकः परात्मा गतिम जिनेन्द्रः ॥ ९ ॥
भावार्थ तथा नथी तो जेमने पक्षी, सिंह अने बलदादिकनुं वाहन. तेमज धनुषु विनानो अने रागद्वेषजन्य विकारथी मुक्त, अने जेमना निन्धचरित्रोथी, लोकोने पण भय नथी, एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे याओ ॥ ९ ॥
न गौरी न गङ्गा न लक्ष्मीर्यदीयं
वपुर्वा शिरो वाऽप्युरो वा जगाहे । यमिच्छावियुक्तं शिवश्रीस्तु भेजे
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥ १० ॥
भावार्थ-नथी तो जेमना शरीर साथे पार्वती अने नथी नेमना मस्तके गङ्गा, तेमन नथी जेमना वक्षःस्थल उपर लक्ष्मी उतां पण जे इच्छारहित प्रभने मोक्षलक्ष्मी वरी छे, एवो ते एकज जिनेन्द्र परमात्मा अमारा कल्याणने माटे थाओ॥१०॥
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