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( १२०) अर्थ विनानुं घणुं कहीने केवळ अनर्थनेज करवावाळा पण्डितोथी आपणा आत्मानु शुं हित थवानुं छे ? अर्थात् काईन नहीं ॥ ३९ ॥
हवे नीचेना श्लोकथी शोधवानो उपाय पण बतावे छेयस्य निखिलाश्च दोषा न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ ४० ॥
भावार्थ-हवे आपणने जोवान ए छे के जे देवोमां रागद्वेष मोहादि कोई पण प्रकारना दोषो जोवामां आवता न होय अने जेना चरित्रमा, जेना वचनमां, जेना शास्त्रोमां जे तरफ जोईए ते तरफ तेनामां ज्ञानादिक निर्मल गुणोज जोवामां आवता होय, ते चाहे तो नामथी ब्रह्मा होय, चाहे विष्णु होय, चाहे महादेवना नामथी ओळखाता होय के जिनदेवना नामथी प्रसिद्ध होय, तेवा महापुरुषने अमारो सदा नमस्कार छे. अने ते अमारो परम देव पण छे ॥ ४० ॥
हवे बधाए देवोनां चरित्रो जोतां जोतां जे देवतुं चरित्र निर्दोष लागवाथी जेनो आश्रय लीधो छे ते पोताना देवने नामी पण बतावे छे
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