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पुन द्विवेदी मणिलाल नमुभाई पण पोताना सिद्धांतसारना - पृ. ३१ थी लखे छे के
" अत्रे एटलं निश्चयपूर्वक जणाय छे के सर्वोपरि कोई सत्तानी भावनासहित अनेक देवता पूजा, एज मूल धर्म विचारनुं रूप होवु जोईए. आ वात वेदमंत्रोथी पदे पदे स्पष्ट थाय छे. यद्यपि मंत्रोमा अनेक देवतानी स्तुतिओ आवे छे, अने ने चखते जे देवने स्तव्यो होय छे ते वखत ते देवने जेटला अपाय तेलां विशेषणादिक आपी परमेश्वररूपे उराव्यो होय छे. तथापि ऋषिओना मनमांथी ए वात खसती नथी के कोई सर्वनियंता, सर्वोपरि, एक देव होवो जोईए. आवा मुख्य ईश्वरनी शोधमांने शोधमां तेओ घडीमां आ देवने, घडीमां पेला देवने, एम अनेक देव-देवताने ईश्वररूपे भजे छे पण एकथी संतोषपामी विरामता नथी. ईश्वरपदने एक पण अमुक देव, चिरकाल सुवी धारण करी रह्यो होय तेवं वेदमंत्रोमा जणातुं नयी, एम कहीए तोपण भूल भरेलुं नथी. के वेदकालथी मांडीने ते छेक आज पर्यंतमां पण, आर्यधर्ममां सर्वमान्य कोई अमुक तेज ईश्वर, एवो निर्णय थयोज नथी. ने ते नथी थयो एमांज ए धर्मने खीलववानो अवकाश मल्यो छे. जे जे देशमां ए भावना स्थिरताने पामी छे ते ते
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