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(९५) कहनी चाहिये । ईश्वरकी सृष्टि अनाद्यनन्त है, और कल्पके भी पूर्वमें कल्प है, जब ऐसी स्थिति है तब तो इस कल्पकी इस सृष्टिको भी इतना समय बीत चुका है कि जिस्के अङ्कोकी शून्यसूचक बिन्दुमाला देख कर बुद्धिमान् गणककी बुद्धिमें भी चक्कर आ जायगा।
सज्जनों ! यह सृष्टि बहुतही प्राचीनकालसे चली आती है, और आप यह भी जानते हैं कि सृष्टिकी आदिहीमें सर्जन करने वालेने आवश्यक वस्तुओंका ज्ञान दे दिया था, उस्का निरूपण मेरे जैसा अज्ञ कहाँ तक कर सकता है परंतु यह अवश्य कहा जा सकता है कि-परमेश्वरने अपनी सृष्टिमें लौकिक उन्नतिकी सीढ़ीपर्यन्त सबही विषय सृष्टिके आदि में जीबोंको दिखा दिया था, तो अब आप ऐसा जानिये कि जैसे उन्हें आदिकालमें-खाने, पीने, न्याय, नीति और कानून का ज्ञान मिला, वैसेही अध्यात्मशास्त्रका ज्ञान भी जीवोंने पाया। और वे अध्यात्मशास्त्रमें सब हैं जैसे सांख्ययोगादिदर्शन और जैनादिदर्शन ।
तब तो सज्जनों ! आप अवश्य जान गये होंगे कि जैन
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