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कारण होती है वह क्षणभरमें सुखकी कारण हो जाती है। सज्जनों ! आपने जाना होगा कि यहाँ पर स्पष्टही अनेकान्तवाद कहा गया है । सज्जनों ! एक बात पर और भी ध्यान देना जो-"सदसद्भ्यामनिर्वचनीयं जगत् " कहते हैं उनको भी विचारदृष्टिसे देखा जाय तो अनेकान्तवाद माननेमें उज्र नहीं है, क्योंकि जब वस्तु सत् भी नहीं कही जाती, और असत् भी नहीं कही जाती, तो कहना होगा कि किसी प्रकारसे सत्-हो कर भी वह किसी प्रकारसे-असत् है, इस हेतु-न वह सत् कही जा सकती है, और न तो असत् कही जा सकती है, तो अब अनेकान्तता मानना सिद्ध होगया।
सज्जनों ! नैयायिक-तमःको तेजोऽभावस्वरूप कहते हैं, और मीमांसक और वैदान्तिक बड़ी आरभटीसे उस्को खण्डन करके उसे भावस्वरूप कहते हैं, तो देखनेकी बात है कि आज तक इस्का कोई फैसला नहीं हुआ कि कौन ठीक कहता है, तो अब क्या निर्णय होगा कि कौन बात ठीक है, तब तो दोकी लड़ाई तीसरेकी पौवारा है याने जैनसिद्धान्त सिद्ध हो गया, क्योंकि वे कहते हैं कि वस्तु अनेकान्त है उसे किसी प्रकारसे भावरूप कहते हैं, और किसी रीति पर अमावस्वरूप भी कह
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