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१० जैनधर्मने अंगीकार कर्या पछी सर्वज्ञनी यथार्थपणे स्तुति
करनार त्रण ब्राह्मण पंडितो ( श्रीहरिभद्रसूरि, सिद्धसेनदिवाकर, पं० धनपाल ) ना योग्य थएला उद्गारो.
.... .... .... .... पृ. १११ थी. ११ तीर्थकरनी स्तुति करतां-सर्वज्ञकल्प श्री हेमचंद्राचार्यजीना
यथार्थपणे थएला उद्गारो. .... पृ. १२२ थी. १२ अनादिथी चालती आवेली आ दूनीयाना, ब्रह्म, हरि,
हरादिकने अयोग्यपणे, वेद, स्मृति, पुराणादिक वालाओए
ठरावेला कर्ता तेनो लिवार-लेखक-संग्रहकार. पृ.१४५ थी. १३ जे जे उत्तम गुणो जीवमां प्रगट थवाथी परम पर
मात्माने योग्य थाय ते ते ते गुणोथी गर्भित परमात्मानी स्तुति-कर्ता श्रीसिद्धसेनदिवाकर.... पृ. १७० थी.
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