________________
( १९ )
तेम होय पण सर्वजगत्नी उत्पत्ति शून्यथी थई ने तेनो शून्यमा लय थाय छे. एवी उपपत्ति ते करे अथवा अन्यथा करे पण सर्वव्यापि आत्मा तत्त्व छे एम जे अद्वैतवादिओनो मत छे तेना विरुद्ध बुद्धनो मत हतो ए देखीतो छे. जैनलोको ब्राह्मणो प्रमाणे आत्मतत्त्व माने छे परन्तु सांख्य, न्याय अने वैशेषिकदर्शनकारी प्रमाणे ते जगत्व्यापि न मानतां तेनुं विमुत्त्व नियमित माने छे.. alerator पंचस्कन्ध विगेरे जे सिद्धान्तो छे तेनी नक्कल जैनशास्त्रमां नथी. जैनोना अध्यात्मग्रन्थोमां सर्व जगो पर जे एक विशेष उपलब्ध थाय छे ते ए छे के, फक्त प्राणी अथवा वनस्पतिमांज जीवतत्त्व न मानतां पंचमहाभूतोना अत्यंतबारिक परमाणुमां- एटले पृथ्वी, आप, तेज, वायु अने आकाश इत्यादिकोमां पण जीवतत्त्वनुं अस्तित्व माने छे. बौद्धोना अध्यात्मग्रंथोमां एवा प्रकार क्यांए प्रतिपादन करेलुं नथी. हिंदुतत्त्वज्ञानमां ज्ञाननी संपूर्ण अवस्था सुधी जुदां जुदां पगथियां मानेलां हे पण ए विषे जैनोनो स्वतंत्र मत छे. ए संबंधि तेओनी परिभाषा ब्राह्मणो करतां अने बौद्धो करतां बिलकुल जुदीज छे. तेओना मत प्रमाणे यथार्थ ज्ञानना ५ प्रकार छे. ते एवा प्रकारे के, १ मतिज्ञान, २ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनः पर्यवज्ञान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org