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पण सत्यरूपज छे' इत्यादि लखीने ठेवटमां "जैनधर्मनो उद्भव अने विकास ए बीजामांथी न थतां स्वतन्त्रन छे" आ छेवटना फकराथी विचार करीए तो पण जैनोए पोताना आचारो अने विचारो बीजा कोईनी पासेथी लीधा नथी ए चोक्खे चोक्खं लेखके सिद्ध करी बताव्युं छे. उदाहरण तरीके-पृ. १७ मां लेखक लखे छे के" हालमा भारतीयलोकोना जे आचार विचार अने धर्मसंस्थाओ छे तेओमां जैन धर्मसंस्था अने विचार मळी गएलां छे. ए नगर प्रदक्षिणा, आलंदीनी पालखी, पोताना पोडशोपचारनी पूजा, नैवेद्यसमर्पण विगेरे जैनधर्मिओना साथे तुलना करी जोतां तरत ध्यानमा आवशे." तथा पृ. १८ मां " भारतीय लोकसमाजमां जैन अने बौद्धधर्म एटलो बधो व्यापी गयो छे के--पौराणिक धर्ममां अने पछीना पन्थमां तेमना ( जैनधर्मना ) आचारविचारोनुं अने तेओनी धर्मपद्धतिनुं तादात्म्य थई गयुं छे, ए भगवद्गीतादिग्रन्थोमां बौद्धोना निर्वाणादिशब्दो जे बिलकुल लीन थई गया छे ते उपर तरत ध्यान आपवा जेबुं छे. पछी जैनधर्मनो द्वेष करतां करतां अमारा आचार विचार उपर, सन्ध्यापूनादि विधिओ उपर, हमेश बोलवाना स्तोत्रो उपर पण तेनो असर थएलो छे." पृ. १९ मां " भरतखण्डमां तो शं पण आखा जगत् उपर बन्ने
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