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लेखकना पण एवाज प्रकारना अनेक खुलासा जोवामां आवशे. ते खुलासा नीचे प्रमाणे
(१) पृ. ५९ मां " हिन्दुज्ञानमां ज्ञाननी संपूर्ण अवस्था सुधीनां जुदां जुदां पगथियां मानेलां छे पण ए विषये जैनोनो स्वतन्त्रन मत छे. ए संबन्धी तेओनी परिभाषा ब्राह्मणो करतां अने बौद्धो करतां बिलकुल जुदी छे." ___ अहिं विचार करवानो ए छे के मोक्षनी पूर्ण अवस्थानो पायो सर्व मतोमा मुख्यपणे ज्ञान उपरथी रचाएलो छे. ज्ञानाहते न मुक्तिः एवं वेदवाक्य पण छे तेनो विचार हजारो श्लोकोना विस्तारथी जैनग्रन्थोमां करेलो छे. ज्यारे तेवा मुख्य मुख्य विषयोमां पण जे जैनधर्म बीजा कोईनी पण अपेक्षा राखतो नथी तेवा स्वतन्त्रमत (जैनधर्म ) वालाने यमनियमादि जेवी सामान्य बाबतो बीजा पासेथी लेवानी केवी रीते जरूर पडे ? अर्थात् नन पडे एम अर्थापत्तिन्यायथी लेखके स्वयं सिद्ध करी बताव्युं छे.
(२) पृ. ६२मां “ जैनधर्म ए बौद्धधर्ममांथी निकळेलो नथी, तेनो उद्भव स्वतन्त्र होवाथी तेणे बौद्धमांथी विशेष लीधेलं पण
नथी."
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