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(१२) एम माने छे. जैन धर्मिओना मन्दिरोनी ठठा अने निर्मर्त्सना करे छे. अने घणा स्मृतिग्रन्थोमां शास्त्रग्रन्थोमां अने टीकाग्रन्थोमांथी जैन अने बौद्ध एओने वेदबाह्य माने छे. जैन ग्रन्थोनुं सूक्ष्मावलोकन करतांजैनधर्म ए जूदो धर्म नथी पण उपनिषत्कालीन अने ज्ञानकांड कालीन महान महान् ऋषीयोना जे उत्तमोत्तम मतो हतां ते सर्वे एकत्र ग्रंथित करीने बनावेलो धर्म होय एम देखाई आवे छे. अर्थात जनधर्मनुं प्रथमनु स्वरूप कहिये तो विशुद्ध छे. एटले जे वैदिक धर्म तेज जैन धर्म छे. एनां अनेक प्रमाणो छे. अनेक ग्रन्थोमां वेदोने पोताना कहेवाने तेओएवेदोना प्रमाणो आप्या छे. तेज प्रमाणे जुदा जुदा जैनकाव्योमां जैन पंडितोना वर्णनोमां, तेओ चारे वेदोमां निपुण हतां एवा प्रकारना वर्णनो मळी आवे छे. घणा जैनग्रन्थो उपरथी तो एवं लागे छे के, जैन एटले एक विशुद्ध वैदिक धर्मनी शाखा छे. जैनोमांना डाह्या पंडितो अने अग्रणीओ पोते वैदिक धर्मना अथवा जुना प्रचलित मार्गना द्वेष्टा छीये एम नही बताववा माटे घणी कालजी
१ महान् महान् ऋषियोना उत्तमोत्तम मतथी ग्रंथित करेलो एम अनन्यगतिथी केहबुं पड्युं हशे. केमके जीवादिक तत्त्वोतं, पांचज्ञाननु, अने कर्मना सिद्धांतोनू सूक्ष्म स्वरूप, बीजे ठेकाणे संपूर्ण शैते न होय तो जनोना जत स्वोमांथी गयेटुमानवामां शुं हरकत भावे ?
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