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पण एटली हद सुधी पहोच्यु के, एकन विषय उपर ब्राह्मणी प्रन्यो अने जैन ग्रन्थो एवा भेद पडवा लाग्या. ब्राह्मणोए जैन ग्रन्थोन अध्ययन कर एटले पाप, अने जैनोए ब्राह्मण ग्रन्थोनुं अध्ययन करवू एमां हलकापणुं छे, एम मानवानो रिवाज पड्यो. ए वाग्भट, अमरकोष, हैमव्याकरण, विगेरे विषे जे वार्ताओ छे ते उपरथी खुल्ली रीते जणाय छे. जे प्रमाणे जैनोए वैदिक राजाओ, पंडितो अने देव विगैरेने पोताना ग्रन्थोमां जैन बनाव्या ते प्रमाणे ब्राह्मणोए पण भागवत विगेरे ग्रन्थोमां जैनोना आद्य धर्मस्थापक ऋषभदेव विगेरेने भागवत बनाव्या. ए प्रमाणे भरतखंडमां पोताना कडकडित वैराग्यथी अनेक सैकाओ सुधी पोतानो कायम अमल बेसाड्यो. छतां कुमारिलभट्ट, शङ्कराचार्य,रामानुज, मध्व, बल्लभ इत्यादि अनेक आचार्योए अविश्रान्त परिश्रमथी तेओनी सत्ता नष्ट करी वैदिकधर्मनुं पुनरुज्जीवन कर्यु. लाखो नहीं पण करोडो लोको समजे छे के, कुमारिलभट्ट, विगेरे मोटा मोटा महापुरुषोए जैन धर्मिओनो जगोजगो पर पराभव करी तेओना स्थापन करेला धर्मनुं सत्यानाश करी पोताना परमपूज्य प्राचीन वैदिक धर्मनी स्थापना करी. - ए बाबतमां सामान्य लोको करतां अमारी समजुती
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