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( ४३ )
अहीं केटलाक विवादग्रस्त मुद्दाओनुं स्पष्टीकरण करवा.
इच्छं छं.
जेओ जैन अथवा आईतना नामयी प्रसिद्ध छे, तेओ ज्यारे बौद्धधर्म स्थपाइ रह्यो हतो, त्यारे एक महत्वशाली संप्रदाय तरीके क्यारनाए प्रसिद्ध थई चुक्या हता. आ विषयनी सिद्धिमां बौद्धनाज प्राचीनमां प्राचीन गणाता १ अंगुत्तरनिकाय, २ महावग्ग, ३ दीघनिकाय, ४ बुद्धघोषनी टीका आदि अनेक ग्रंथोनां उदाहरणो आपी, सर्व प्रकारथी सिद्ध करीने बतान्युं छे. जेमके बौद्धप्रथोमां लख्युं छे के 'नातपुत्त - सर्वज्ञान अने सर्वदर्शन प्राप्त करवानो दावो करे छे.' ए प्रकारनं जे कथन छे तेने माणआपवानी जरुर नथी. कारण के-आ तो जैनधर्मनुं खास एक मौलिक मंतव्यज छे.
पृ. ४१ मां लख्युं छे के - " पापे ए आचरनारना आशय
१ जैनोना संकेत मुजब असत्य निरूपण करेलं नथी पण सत्यरूपेज थलं छे, केमके - सूक्ष्मनिगोदना, पृथ्वी, जल, आदि पांच स्थावरना, वेइंद्रिय, तेरेंद्रिय, चौरेंद्रिय अने छेवट सन्मूर्छन पंचेंद्रियना जीवोने मन होतुं नथी, छतां पापनो बंध तो थाय छे, तेथी पापनुं बंधनं केवल आशयथीज थाय छे तेम नथी, पण मिथ्यात्वाऽवृत्ति आदिना योगे आशय
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